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व्यास मुनि के पास जाकर भीमसेन ने पुकार की कि मेरी पूज्य माता कुन्ती व पूज्य भ्राता युधिष्ठिर तथा अर्जुन, नकुल, सहदेव द्रोपदी सहित एकादशी का व्रत करते हैं और मुझे भी शिक्षा देते हैं कि अन्न मत खा, नरक में जाएगा। आप विचारिये मैं क्या करूं ? 15 दिन के बाद यह एकादशी आ जाती है और हमारे घर में झगड़ा उत्पन्न हो जाता है मेरे उद्धर में अग्नि का निवास है, उसे अन्न की आहुति न दूं तो चर्बी को चाट जाएगा
श्रीकृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर ! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगनी है। इसके महात्म्य की एक पौराणिक कथा कहता हूँ-अलकापुरी में शंकर के भगत कुबेर जी रहते थे, पूजा के लिए हेममाली पुष्प लाया करता था, उसकी स्त्री अति सुन्दर थी नाम उसका विशालाक्षी था। हेममाली एक दिन मानसरोवर से पुष्प तोड़कर घर आया, पत्नी की छवि देखकर कामातुर हो गया, पूजा के फूल भूल गये। कुबेर भण्डारी रास्त
भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर ! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका है। इसका महात्म्य लोक हितार्थ एक समय देवर्षि नारद ने पितामह भीष्म से पूछा। उन्होंने इस पवित्र व्रत में भगवान विष्णु की पूजा कही थी। पृथ्वी दान, स्वर्ग दान, कन्या दान इत्यादि महादान के फल से विष्णु पूजा का फल अधिक है। कामिका एकादशी के समान विष्णु पूजा का फल है, जो फल मनुष्य को अध्यात्म विद्या से म
श्री कृष्णजी बोले- हे युधिष्ठिर ! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पवित्र है। यह पुत्र की इच्छा पूर्ण करने वाली है। इस कारण इसका नाम पुत्रदा भी प्रसिद्ध है। इसमें गौ माता का पूजन करना चाहिए। इसके महात्म्य की कथा ऐसे है- एक महीमती नगरी थी। उसमें महीजीत नाम का राजा राज्य करता था। बड़ा धर्मात्मा था परन्तु पुत्रहीन था। उपाय बहुत फिए परन्तु सब व्यर्थ गये, दिल का कांटा न निक
भगवान कृष्ण बोले- हे धर्मपुत्र ! भादों मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। इसका महात्म्य गौतम मुनि ही जानते हैं, जिसने युगों का परिवर्तन कर दिया था। कथा इसकी ऐसे है- सूर्य वंश में 31वीं पीढ़ी पर राजा हरिश्चन्द्र अयोध्या नगरी में हुआ था। उसके द्वार पर एक श्यामपट लगा था, जिसमें मणियों से लिखा हुआ यह लेख था- इस द्वार में मुंह मांगा दान दिया जाता है। विश्वामित्र ने पढ़कर कहा, मणि
श्री कृष्णजी बोले- हे युधिष्ठिर ! भादों शुक्ला पक्ष की एकादशी का नाम वामन जयन्ती तथा परिवर्तिनी है। उसमें वामन भगवान की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु शयन मन्दिर में करवट बदलते हैं। इस कारण इसका नाम परिवर्तिनी है। इसके महात्म्य की कथा ऐसे है-त्रेता युग में प्रहलाद का पौत्र राजा बलि राज्य करता था। ब्राह्मणों का सेवक था, भगवान विष्णु का भक्त था, इन्द्रादिक देवताओं का शत्रु था।
द्वारकानाथ जी बोले- हे धर्मपुत्र ! आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इन्द्रा है। इसके महात्म्य की एक कथा कहता हूँ- एक समय देवर्षि नारद ब्रह्म लोक से यम लोक में आये। एक धर्मात्मा राजा को उसने यम लोक में दुःखी देखा, दिल में दया आई। उसका भविष्य कर्म विचार कर महिष्मती नगरी में आये जहाँ उस राजा का पुत्र राज्य करता था। राजपुत्र को कहने लगे तेरे पिता को मैं यमराज की सभा में बैठा देख आ
श्री कृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर ! आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पाशांकुशा है। यदि इसके व्रत में श्रद्धा भक्ति सहित भगवान विष्णु का पूजन किया जाये तो मन वांछित फल प्राप्त होती है। इस लोक में सुन्दर स्त्री, पुत्र और धन सर्व सांसारिक सुख मिलते हैं, अन्त में वह आप भी स्वर्ग को जाता है और उसके मातृ पक्ष के दस पुरूष तथा स्त्री पक्ष के दस पुरूष विष्णु जी का स्वरूप होकर बैक
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! कार्तिक कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि क्या है ? इसके करने से क्या फल प्राप्त होता है। आप मुझे विस्तारपूर्वक बतायें। भगवान श्रीकृष्ण बोले कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम ‘रमा’ है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। इसका माहात्म्य मैं तुमसे बताता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।
हे राजन.. प्राचीन काल में मुचुकुन्द नाम का एक राजा
भगवान कृष्ण बोले - हे युधिष्ठिर ! अधिक (लौंद) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मनी है। इसमें मेरी और मेरी प्यारी वृषभानु दुलारी की तथा शिव पार्वती की पूजा की जाती है। इसकी विधि यह है- दशमी के दिन मिथ्या भाषण निंदा आदि कुकर्मों का त्याग करे, रात्रि को भूमि पर शयन करे इसके महात्म्य की कथा पुलस्त्य ने नारद ऋषि को सुनाई थी।
त्रेता युग में एक महिष्मति नामक नगरी में कृतवीर्य न