Dalip Shree Shyam Comp Tech. 9811480287
Baba Khatu Shyam Ekadashi

shyam aartiJAI SHREE SHYAM JI CLICK FOR ⇨ SAIJAGAT.COM  || SHYAM AARTI  || SHYAM RINGTUNE  || SHYAM KATHA  || SHYAM GALLERY  || CHULKANA DHAM  ||

shyam aarti

Rama Ekadashi Vrat Katha and Vrat Vidhi in Hindi


All the Shyam devotees are welcome at our website www.babakhatushyam.com. On this page, you will find the full faith and devotional ekadashi vrat katha of Baba Khatushyam.So come and go deep in the devotion of Baba.



28.10.2024-Monday (Krishna Paksha)

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! कार्तिक कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि क्या है ? इसके करने से क्या फल प्राप्त होता है। आप मुझे विस्तारपूर्वक बतायें। भगवान श्रीकृष्ण बोले कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम ‘रमा’ है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। इसका माहात्म्य मैं तुमसे बताता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।
हे राजन.. प्राचीन काल में मुचुकुन्द नाम का एक राजा था उसकी इंद्र के साथ दोस्ती थी और साथ ही यम, कुबेर, वरुण व विभीषण भी उसके दोस्त थे। यह राजा बड़ा धर्मात्मा, विष्णु भक्त तथा न्याय के साथ राज करता था उस राजा की एक कन्या थी जिसका नाम चंद्रभागा था उस कन्या का विवाह चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था एक बार वह शोभन ससुराल आया। उन्हीं दिनों जल्दी ही पुण्यदायिनी एकादशी यानि रमा एकादशी भी आने वाली थी। जब व्रत का दिन निकट आ गया तो चंद्रभागा के मन में अत्यंत सोच उत्पन्न हुआ कि मेरे पति अत्यंत कमजोर हैं और मेरे पिता की आज्ञा बहुत कठोर है। दशमी को राजा ने ढोल बजवाकर पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिये। ढोल की घोषणा सुनते ही शोभन को अत्यंत चिंता हुयी और अपनी पत्नी से कहा कि हे प्रिये! अब क्या करना चाहिये, मैं किसी प्रकार भी भूख सहन नहीं कर सकता। कुछ ऐसा उपाय बताओ, जिससे मेरे प्राण बच जायें अन्यथा मेरे प्राण अवश्य चले जायेंगें। तब चंद्रभागा कहने लगी कि हे स्वामी! मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता। हाथी, घोड़ा, ऊँट, बिल्ली, गौ आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं कर सकते, फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या? यदि आप भोजन करना चाहते हैं तो किसी दूसरे स्थान पर चले जायें क्योंकि यदि आप यहीं रहना चाहते हैं तो आपको अवश्य व्रत करना होगा। ऐसा सुनकर शोभन कहने लगा कि हे प्रिये! मैं अवश्य व्रत करूँगा जो भाग्य में होगा वह देखा जायेगा। इस प्रकार से विचार कर शोभन ने व्रत रख लिया और वह भूख व प्यास से अत्यंत तड़पने लगा। जब सूर्य नारायण अस्त हो गये और रात्रि को जागरण का समय आया, जो वैष्णवो को अत्यंत हर्ष देने वाला था परन्तु शोभन के लिये बहुत दुखदायी हुआ। प्रातःकाल होते ही शोभन के प्राण निकल गये। तब राजा ने सुगन्धित काष्ठ से उसका दाह संस्कार करवाया। लेकिन चंद्रभागा ने अपने पिता की आज्ञा से अपने शरीर को दग्ध नहीं किया और शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के बाद अपने पिता के घर में ही रहने लगी। रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुन्दर देवपुर प्राप्त हुआ। वह बहुत सुन्दर रत्न और वैदुर्यमणि जटित स्वर्ण के खम्भों पर निर्मित अनेक प्रकार की स्फटिक मणियों से सुशोभित भवन में बहुमूल्य वस्त्र अभूषणों तथा छत्र व चँवर से विभूषित गंधर्व और अप्सराओं से युक्त सिंहासन पर आरूढ़ ऐसा शोभायमान होता था मानो दूसरा इन्द्र विराजमान हो। 
एक बार मुचुकुंद नगर में रहने वाले एक सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थयात्रा करता हुआ घूमता-घूमता उधर जा निकला और उसने शोभन को पहचान कर सोचा कि यह तो राजा का जमाई शोभन है उसके पास गया। शोभन ने भी उसे पहचान कर अपने आसन से उठकर उसके पास आया और प्रणामादि करके कुशल प्रश्न किया। ब्राह्मण ने कहा कि राजा मुचुकुन्द और आपकी पत्नी कुशल हैं। नगर में भी सब प्रकार से कुशल हैं परंतु हे राजन! हमें आश्चर्य हो रहा है कि आप अपना वृत्तांत कहिये कि ऐसा सुंदर नगर जो न कभी देखा, न सुना, आपको कैसे प्राप्त हुआ। तब शोभन बोला कि कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ परंतु यह अस्थिर है। यह स्थिर हो जाये ऐसा उपाय कीजिये। ब्राह्मण कहने लगा कि हे राजन! यह स्थिर क्यों नहीं है और कैसे स्थिर हो सकता है। आप बताइये, फिर मैं अवश्य मैं वह उपाय जरूर करूँगा। मेरी इस बात को आप मिथ्या न समझें। शोभन ने कहा कि मैंने इस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया है। अतः यह सब कुछ अस्थिर है। यदि आप मुचुकुन्द की कन्या चंद्रभागा को यह सब वृत्तांत कहें तो यह स्थिर हो सकता है। ऐसा सुनकर उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने अपने नगर लौटकर चंद्रभागा से सब वृत्तांत कह सुनाया। ब्राह्मण के वचन सुनकर चंद्रभागा बड़ी प्रसन्नता से ब्राह्मण से कहने लगी कि हे ब्राह्मण! ये सब बातें आपने प्रत्यक्ष देखी हैं या स्वप्न की बातें कर रहे हैं ब्राह्मण कहने लगा कि हे पुत्री! मैंने महावन में तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है। साथ ही किसी से विजय न हो ऐसा देवताओं के नगर के समान उनका नगर भी देखा है। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थिर नहीं है। जिस तरह वह स्थिर रह सके सो उपाय करना चाहिये। चंद्रभागा कहने लगी हे विप्र! तुम मुझे वहाँ ले चलो मुझे पतिदेव के दर्शन की तीव्र लालसा है। मैं अपने किये हुये पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूँगी। आप ऐसा कार्य कीजिये जिससे उनका हमारा संयोग हो, क्योंकि वियोगी को मिला देना महान पु्ण्य है। सोम शर्मा यह बात सुनकर चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के निकट वामदेव ऋषि के आश्रम पर गया। वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक कर दिया। तब ऋषि के मंत्र के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य गति को प्राप्त हुयी। इसके बाद बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पति के पा गयी। अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बिठा लिया। चंद्रभागा कहने लगी कि हे प्राणनाथ! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिये। अपने पिता के घर जब मैं 8 वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक एकादशी के व्रत को श्रद्धापूर्वक करती आ रही हूँ इस पुण्य के प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जायेगा तथा समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अंत तक रहेगा। इस प्रकार चंद्रभागा ने दिव्य आभूषणों और वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी।
हे राजन! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है, जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनके ब्रह्म इत्यादि समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों की एकादशियाँ समान हैं इनमें कोई भेदभाव नहीं है दोनों समान फल देती हैं। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ते अथवा सुनते हैं वे समस्त पापों से छूटकर विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं।

इति शुभम्