All the Shyam devotees are welcome at our website www.babakhatushyam.com. On this page, you will find the full faith and know about of Baba Khatushyam chulkana temple.So come and go deep in the devotion of Baba.
प्राचीन समय की बात है जब त्रेतायुग में चुनकट ऋषि लकीसर बाबा नौलखा बाग में घोर तपस्या कर रहे थे। उसी राज्य में एक चकवाबैन नाम के राजा हुआ करते थे। जो एक चक्रवर्ती सम्राष्ट थे। जिनका पूरे पृथ्वी लोक और मृत्यु लोक पर राज्य हुआ करता था। एक दिन उन्होंने अपने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी जीव मेरे राज्य में हैं वो मेरा ही अन्न-जल ग्रहण करेगा। यह सूचना जब ऋषि लकीसर को पता चली तो बाबा ने राजा को एक संदेश भेजा कि मैं आपका अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा। मेरी तपोभूमि में (नौलखा बाग) हर तरह की वनस्पति है और मेरा जीवनयापन यहीं से हो जायेगा। जब यह बात राजा को पता चली तो राजा ने एक संदेश भिजवाया कि यदि मेरे राज्य का अन्न-जल ग्रहण नहीं करोगे तो मेरे राज्य से बाहर चले जाओ या फिर मेरे साथ युद्ध करो। बाबा ने उसके राज्य को छोड़ना ही उचित समझा और वो यहां से चले गये। जब चलते-चलते पृथ्वी के आखिरी छोर पर पहुंचे तो उन्हें पानी ही पानी नजर आ रहा था। तब उसी दौरान भगवान ने एक लीला दिखाई बाबा को एक बहुत ही सुन्दर हिरण जो कि सागर के किनारे अपनी प्यास बुझाने के लिये आया, जैसे ही वह पानी पीने लगा तभी पीछे से एक शेर दौड़ता हुआ आ रहा है हिरण को दिखाई दिया। तभी हिरण ने आवाज लगाई कि हे राजन्! दुहाई हो आपके राज्य में एक निर्बल की हत्या होने जा रही है, कृपया बचाओ, तभी अचानक कहीं से एक हथियार आता है और उस शेर की गर्दन को काटकर अलग कर देता है। तभी बाबा लकीसर को यह आभास होता है कि यहां भी उसका राज है और वहां भी, तो क्यों न अपनी ही तपोभूमि में जाकर उसका सामना किया जाये। तब बाबा वापिस अपने उसी स्थान नौलखा बाग में (चुलकाना धाम) पहुंच गये। जब राजा को पता चला कि बाबा लकीसर फिर वापिस आ गये हैं तो उन्होंने बाबा को संदेश भेजा कि तुम फिर क्यों आ गये हो। तब बाबा ने जवाब में कहा कि मैं अब इसी राज्य में रहूंगा और आपका अन्न-जल भी कभी ग्रहण नहीं करूंगा। तब राजा ने क्रोधित होकर बाबा को युद्ध के लिये कहा, तब बाबा चुनकट ने एक रात का समय मांगा । अगली सुबह उनसे बातचीत करने को कहा। रात्रि में बाबा ने भगवान के नाम की धूनी लगाई ब्रह्ममुहूर्त में भगवान लक्ष्मी-नारायण प्रकट हुये और बाबा से कहा कि आप उस राजा से युद्ध कीजिये और ये लो 2½ कुशा 2½ युगों तक चलेगी। एक त्रेतायुग में, दूसरी द्वापर युग में द्रोपदी के रूप में और तीसरी कलियुग में। आपको कुशा को तोड़-तोड़ कर फेंकनी है। बाबा ने सुबह वैसे ही किया जैसे ही राजा की सेना बाबा की ओर युद्ध करने के लिये बढ़ी, तभी बाबा एक टुकड़ा कुशा को तोड़कर फेंक देते, परमाणु बम की तरह कुशा विनाश कर रही थी। राजा का सब कुछ नष्ट हो गया। तभी से बाबा चुनकट के इस नौलखा बाग का नाम चुनकट वाला पड़ गया जो आज चुलकाना धाम के नाम से विख्यात है।
हरियाणा राज्य के पानीपत जिला में समालखा कस्बे से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना गांव जो अब चुलकाना धाम से प्रसिद्ध है। यही वह पवित्र स्थान हैं जहां पर बाबा ने शीश का दान दिया था। चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ स्थान माना गया है। चुलकाना धाम का सम्बन्ध महाभारत से जुड़ा है। पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य की पुत्री कामकन्टकटा के साथ हुआ था। इनका पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक को महादेव एवं विजया देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुये जिनसे वह सृष्टि तक का संहार कर सकता थे। बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते। पुत्र की वीरता को देख माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओ, लेकिन अगर युद्ध करना पड़ जाये तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है। मातृभक्त पुत्र ने माता के वचन को स्वीकार किया, इसलिये उनको हारे का सहारा भी कहा जाता है। माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिये घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। उनके घोड़े का नाम लीला था, जिससे लीला का असवार भी कहा जाता है। युद्ध में पहुंचते ही उनका विशाल रूप देखकर सैनिक डर गये। श्री कृष्ण ने उनका परिचय जानने के बाद ही पांडवों को आने के लिये कहा। श्री कृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक के पास पंहुचे। बर्बरीक उस समय पूजा में लीन थे। पूजा खत्म होने के बाद बर्बरीक ने ब्राह्मण के रूप में देखकर श्री कृष्ण को कहा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? श्री कृष्ण ने कहा कि जो मांगू क्या आप उसे दे सकते हो। बर्बरीक ने कहा कि मेरे पास देने के लिये कुछ नहीं है, पर फिर भी आपकी दृष्टि में कुछ है तो मैं देने के लिये तैयार हूं। श्री कृष्ण ने शीश का दान मांगा। बर्बरीक ने कहा कि मैं शीश दान दूंगा, लेकिन एक ब्राह्मण कभी शीश दान नहीं मांगता। आप सच बतायें कौन हो? श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुये तो उन्होंने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? तब श्री कृष्ण ने कहा कि इस युद्ध की सफलता के लिये किसी महाबली की बली चाहिये। धरती पर तीन वीर महाबली हैं मैं, अर्जुन और तीसरे तुम हो, क्योंकि तुम पांडव कुल से हो। रक्षा के लिये तुम्हारा बलिदान सदैव याद रखा जायेगा। बर्बरीक ने देवी देवताओं का वंदन किया और माता को नमन कर एक ही वार में शीश को धड़ से अलग कर श्री कृष्ण को शीश दान कर दिया। श्री कृष्ण ने शीश को अपने हाथ में ले अमृत से सींचकर अमर करते हुये एक टीले पर रखवा दिया। जिस स्थान पर शीश रखा गया वो पवित्र स्थान चुलकाना धाम है और जिसे आज हम प्राचीन सिद्ध श्री श्याम मन्दिर चुलकाना धाम के नाम से सम्बोधित करते हैं। बाबा श्याम की संपूर्ण कथा पढ़ने के लिये लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
श्याम मन्दिर के पास एक पीपल का पेड़ है। पीपल के पेड़ के पत्तों में आज भी छेद हैं। जिसे मध्ययुग में महाभारत के समय में वीर बर्बरीक ने अपने बाणों से बेधा था।
चुलकाना धाम में एकादशी व द्वादशी पर मेला लगता है। बाबा खाटूश्याम मंदिर में दर्शन के लिये भक्तों की बहुत ज्यादा भीड़ उमड़ जाती है। देर शाम तक दर्शन के लिये भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। हाथों में पीले रंग के झण्डे लिये भक्त बाबाश्याम के जयकारा व नारे लगाते रहते हैं। भक्तों के द्वारा बाबा की पालकी भी निकाली जाती है। हर साल फाल्गुन मास की द्वादशी को श्याम बाबा मंदिर में उनकी पालकी निकाली जाती है। विशाल मेला लगता है। चुलकाना धाम में कई राज्यों से हजारों भक्त दर्शन के लिये आते हैं। मेले के कारण एक-दो दिन पूर्व से ही भक्तों का मन्दिर में आना शुरू हो जाता है। रात में भक्तों के द्वारा बाबाश्याम का जागरण व भजन संध्या करते हैं और प्रातकाल से बाबाश्याम के दर्शन प्राप्त कर अपनी मन्नत मांगते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त बाबा श्याम से मन्नत मांगते हैं उनकी मन्नत खाली नहीं जाती है।
जो भक्तगण सच्चे तन-मन-धन से पूजा करते हैं, भगवान उनकी मनोकामनाऐं जरूर स्वीकार करते हैं। किसी भी देवी-देवताओं की कोई विशेष पूजा-विधि नहीं है, वे तो केवल प्रेम के भूखे हैं। आप अपने आपको पूर्णरूप से समर्पित करके जिस विधि से उनकी पूजा-आराधना करेंगे वे स्वीकार कर लेगें।
1. पूजन के लिये आपके पास खाटूश्याम जी की फोटो या मूर्ति होनी चाहिये।
2. गंधा, दीपा, धूप, नेविदयम, पुष्पमाला आपके पास होनी चाहिये।
3. श्याम बाबा की फोटो या मूर्ति को पंचामृत या फिर दूध-दही और फिर स्वच्छ जल से स्नान कराके फिर रेशम के मुलायम कपड़े से साफ करें और पुष्ममाला से श्रृंगार करें।
4. अब पूजन शुरू करने से पहले श्यामबाबा की ज्योत ले एक घी का दीपक जलाये और अगरबत्ती या धूपबत्ती जलायें।
5. खाटूश्याम बाबा को अब भोग में आप चूरमा दाल बाटी या मावे के पेद्दे काम में ले सकते हैं।
6. अब श्यामबाबा की आरती करें और आशीर्वाद लें।
7. खाटूश्याम बाबा के 11 जयकारे लगायें-जय श्री श्याम, जय खाटूवाले श्याम, जय हो शीश के दानी, जय हो कलियुग देव की, जय खाटूनरेश, जय हो खाटूवाले नाथ की, जय मोर्वीनन्दन, जय मोर्वये, लीले के अश्वार की जय, लखदातार की जय, हारे के सहारे की जय।
प्राचीन सिद्ध श्री श्याम मन्दिर चुलकाना धाम में आप सभी भक्तों का हार्दिक स्वागत है। जो भक्तगण बाबाश्याम के दर्शन के लिये चुलकाना धाम आना चाहते है। उन भक्तों के लिये बहुत ही सुविधाजनक मार्ग।
चुलकाना धाम, हरियाणा राज्य के जिला पानीपत, तहसील समालखा में स्थित है। जहां पर बाबाश्याम का भव्य मन्दिर है।
यदि भक्तगण ट्रेन के माध्यम से आना चाहते हैं तो चुलकाना धाम से सबसे नजदीक रेलवे ‘भोडवाल मजरी’ और ‘समालखा’ है। यहां पर उतरने के पश्चात् आपको आटो रिक्शा के माध्यम से चुलकाना धाम पहुंचना पड़ेगा।
Days | Morning Time | Evening Time |
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Monday | 04:00am -12:00pm | 04:00pm -09:00pm |
Tuesday | 04:00am -12:00pm | 04:00pm -09:00pm |
Wednesday | 04:00am -12:00pm | 04:00pm -09:00pm |
Thursday | 04:00am -12:00pm | 04:00pm -09:00pm |
Friday | 04:00am -12:00pm | 04:00pm -09:00pm |
Saturday | 04:00am -12:00pm | 04:00pm -09:00pm |
Sunday | 04:00am -12:00pm | 04:00pm -09:00pm |
पं. श्री मनोज दास जी 9050005559
पं. श्री हवा सिंह जी 9991381403
पं. श्री रामफल जी 9467478764
पं. श्री देवेन्द्र दास जी 9068000305
• अचल : स्थायी, स्थिर, निरंतर • मनोहर : मनमोहक • अच्युत : अविनाशी • मयूर : मोरपंखी वाले भगवान • अद्भुत : निराला भगवान • मोहन : चित्ताकर्षक • आदिदेव : देवताओं के देवता • मुरली : बांसुरी बजाने वाले भगवान • आदित्य : अदिति के पुत्र • मुरलीधर : बांसुरी रखने वाले • अजन्मा : जीवन और मृत्यु से परे • मुरलीमनोहर : मनमोहक बांसुरी बजाने वाले • अजय : जिसे जीता न जा सके • नन्दकुमार : नन्द के बेटे • अक्षर : जिसे नुकसान न किया जा सके • नन्दगोपाल : नन्द के बेटे • अमृत : जिसे मारा न किया जा सके • नारायण : हर किसी के लिए शरण • आनंद सागर : ख़ुशी का भंडार • माखनचोर : मक्खन चुराने वाले • अनंत : जिसका कोई अंत न हो • निरंजन : निष्कलंक • अनंतजीत : जिसने सब कुछ जीत लिया हो • निर्गुण : जिसके गुण का बखान न किया जा सके • अन्य : जिससे ऊपर कोई न हो • पदमहस्त : कमल जैसे हाथ वाले • अनिरुद्ध : जिसको बाधित न किया जा सके • पदमनाभ : कमल जैसी नाभ वाले • अपराजीत : जिसको हराया न जा सके • पारब्रह्म : सबसे बड़ा सत्य • अवयुक्त : जिसमें कोई बुराई न हो • परमात्मा : सबसे बड़ी आत्मा • बालगोपाल : बालक कृष्ण • परमपुरुष : सबसे बड़ा पुरुष • बालकृष्णा: बालक कृष्ण • पार्थसारथि : अर्जुन के सारथि • चतुर्भुज : चार भुजाओं वाला • प्रजापति : सभी जीव जंतु के रचियता • दानवेन्द्र : दान देने वाला भगवान • पुण्य : पनीत, पवित्र • दयालु : कृपालु • पुरषोत्तम : सबसे उत्तम पुरुष • दयानिधि : कृपा का सागर • रविलोचन : सूर्य जिसकी आँखें हैं • देवादिदेव : देवताओं के देवता • सहस्त्रअक्ष : हज़ार आँखों वाला • देवकीनंदन : देवकी माँ के पुत्र • सहस्त्रजीत : हज़ारों पर विजय प्राप्त करने वाला • देवेश : देवताओं के देवता • साक्षी : सबकुछ देखने वाला • धर्माध्यक्ष : धर्म के प्रमुख • सनातन : अनन्त • द्रविन : जिसका कोई क्षत्रु न हो • सर्वजन : सर्वज्ञ, सर्वदर्शी • द्वारकापति : द्वारका के स्वामी • सर्वपालक : सभी का पालन पोषण करने वाला • गोपाल : ग्वालों के साथ खेलने वाला • सर्वेश्वर : सबका ईश्वर • गोपालप्रिय : ग्वालों के प्रिय • सत्यवाचन : सदा सत्य बोलने वाला • गोविंद : गौ को प्रसन्न करने वाला • सत्यव्रत : जिसने सत्य का साथ देने का संकल्प लिया हो • ज्ञानेश्वर : ज्ञान का भगवन • शान्तः : अमनपसंद • हरि : प्रकृति के भगवान • श्रेष्ठ : उत्कृष्ट • हिरण्यगर्भ : शक्तिशाली रचनाकर्ता • श्रीकांत : सुन्दर • ऋषिकेश : सभी बुद्धि के भगवान • श्याम : सावले वर्ण वाला • जगद्गुरु : सारे जगत के गुरु • श्यामसुन्दर : सावले वर्ण वाला सुन्दर • जगदीश : जगत के भगवान • सुमेधा : बुद्धिमत्तापूर्ण • जगन्नाथ : जगत के भगवान • सुरेशम : सभी देवताओं का स्वामी • जनार्दन : सभी को आशीर्वाद देने वाले • स्वर्गपति : स्वर्ग का स्वामी • जयंत : सभी दुश्मनों के विजेता • त्रिविक्रम : तीनो लोक का विजेता • ज्योतिरादित्य : सूर्य की चमक • उपेन्द्र : इंद्र का बड़ा भाई • कमलनाथ : देवी लक्ष्मी के नाथ • वैकुण्ठनाथ : वैकुण्ठ के स्वामी • कमलनयन : कमल जैसी आँखों वाले • वर्धमान : निराकार भगवान • कंसंतक : कंस का वध करने वाले • वासुदेव : वासुदेव के पुत्र • कंजलोचन : कमल जैसी आँखों वाले • विष्णु : सभी प्रचलित भगवान • केशव : घने काले बालों वाले • विश्वदक्षिणा : विश्व को दक्षिणा देने वाले • कृष्ण : सावले वर्ण वाला • विश्वकर्मा : विश्व का रचियता • लक्ष्मीकांतम् : देवी लक्ष्मी के नाथ • विश्वमूर्ती : विश्व की मूर्ति • लोकाध्यक्षा : तीनों लोक के स्वामी • विश्वरूप : विश्व का रूप • मदन : प्यार के भगवान • विश्वात्मा : विश्व की आत्मा • माधव : ज्ञान से भरा भंडार • वृषपर्व : धर्म के भगवान • मधुसूदन : मधु दानव का नाश करने वाले • यादवेन्द्र : यादवों के स्वामी • महेंद्र : इंद्र के भगवान • योगी : योग करने वाला • मनमोहन : मंन को मोहने वाला • योगीनामपति : योगियों के स्वामी