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भगवान कृष्ण बोले- हे धर्म पुत्र ! पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा है। पुत्र की कामना पूरी करने वाली है। इसके महात्म्य की कथा ऐसे है - एक समय भद्रावती नगरी में एक संकेतमान राजा राज्य करता था, उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। विश्व विभूतियों से भवन भरा था। द्वार पर चिन्ता मणियों का प्रकाश था, परन्तु राजा की आंखों में अंधेरा सा प्रतीत होता था, कारण कि उसके पुत्र नहीं था
भगवान कृष्ण बोले - हे युधिष्ठिर ! माघ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम षटतिला है। इसमें (1) तिल से स्नान (2) तिल से उबटन (3) तिल का हवन (4) तिलांजली तिल सहित ठाकुर की चरणोदिक (5) तिल का भोजन (6) तिल का दान, यह षटतिला कहलाती है। इसका महात्म्य पुलस्त्य ऋषि ने दालभ्य को सुनाया था, नारद ऋषि को मैंने आगे सुनाया, क्योंकि इसमें मेरे पूजा की जाती है। इस कारण नारद मेरे पास आया और मैंने आंखों देखी बात सु
श्री कृष्ण बोले - हे धर्म पुत्र ! माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम जया है। इसका महात्म्य पदम-पुराण में ऐसे लिखा है -
एक समय स्वर्गपुरी में इन्द्र के सामने गंधर्व गान कर रहे थे, अप्सरा नृत्य कर रही थीं। उसमें एक पुष्पवती नाम गन्धर्व की स्त्री और माल्यवान नामक मालिन का पुत्र भी था, वह दोनों परस्पर एक-दूसरे पर मोहित थे। उन्हें यह विचार न रहा कि इन्द्र की सभा में श्राप मिल जा
भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया है विजय को देने वाली है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने इसी व्रत के प्रभाव से लंका को विजय किया। कथा ऐसे है- जब भगवान राम कपि दल के सहित सिन्धु तट पर पहुँचे तो रास्ता रूक गया समीप में एकदालभ्य मुनि का आश्रम था जिसने अनेकों ब्रह्मा अपनी आंखो से देखे थे! ऐसे चिरंजीव मुनि के दर्शनार्थ सहित, सेना सहित, राम ल
श्रीकृष्ण जी बोले- हे धर्मपुत्र ! चैत मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पाप मोचनी अथवा पापों को भस्म करने वाली है। इसका महात्म्य एक दिन लोमस ऋषि से राज मानधाता ने पूछा था। लोमस ऋषि बोले- एक चित्ररथ नामक सुन्दर बन था। देवराज इन्द्र का क्रीड़ा स्थल था। उस बन में एक मेधावी मुनि तपस्या करते थे, भगवान शंकर के भक्त थे। शंकर के सेवकों से कामदेव की जन्म से शत्रुता रहती है। अप्सराओं को स
भगवान कृष्ण बोले- युधिष्ठिर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा है। इस का महात्म्य राजा दलीप ने गुरू वशिष्ठ से पूछा था। वशिष्ठ जी बोले-एक भोगीपुर नगर में पुण्ड्रीक नाम राजा राज्य करता था, उसकी सभा में गन्धर्व गान करते थे, अप्सरा नृत्यु करती था। उनमें ललिता नाम गन्धर्वनी और गन्धर्व भी रहता था, उनका परस्पर अति प्रेम था। एक दिन राज्य सभा में ललित गंधर्व गान कर रहा था।
श्रीकृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर ! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम आमला है। एक समय वशिष्ठ मुनि से मानधाता राजा ने पूछा, समस्त पापों का नाश करने वाला कौन व्रत है ? वशिष्ठ जो बोले- पौराणिक इतिहास कहता है - वैश्य नाम की नगरी में चन्द्रवंशी राजा चैत्ररथ नाम का राजा राज करता था वह बड़ा धर्मात्मा था, प्रजा भी उसकी वैष्णव थी। बालक से लेकर वृद्ध तक एकादशी व्रत किया करते थे। एक बा
भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर ! बैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम बरूथनी है। इसका व्रत महाफल दायक है। शास्त्र का लेख हाथी-घोड़ो भूमि दान को उत्तम कहता है। भूमि से तिल दान, तिल से स्वर्ण दान और स्वर्ण से अन्नदान श्रेष्ठ है। अन्न से कन्या से, बरूथनी एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है, जो फल कुरूक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय स्वर्ण दान से मिलता है। वह बरूथनी एकादशी के व्रत से होता ह
भागवान कृष्ण बोले- हे धर्म पुत्र ! बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोहनी है। उसका महात्म्य मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने गुरू वशिष्ठ जी से पूछा था। वशिष्ठ ने कहा सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की नगरी है, उसमें धृतमान राजा राज्य करता था उसके राज्य में एक धनपाल वैश्य रहता था, बड़ा धर्मात्मा और विष्णु का भगत था। उसके पांच पुत्र थे, बड़ा पुत्र महापापी था। जुआ खेलना, मद्यपान
श्रीकृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर ! ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा है। अपार संसार समुद्र से पार करने वाली है। इस व्रत से महापापों का नाश हो जाता है। जो क्षत्री का पुत्र युद्ध भूमि से पीठ दिखाकर भाग जये धर्म शास्त्र उसे नरक का अधिकारी कहता है यदि वह भी अपरा एकादशी का व्रत कर ले तो निश्चय स्वर्ग को जायेगा। जो माता-पिता तथा गुरू की निंदा करता है, नीति उसे नरक का भागी