All the Shyam devotees are welcome at our website www.babakhatushyam.com. On this page, you will find the full faith and devotional Baba Khatushyam.You can know about of Baba khatushyam, how to reach, distance etc. So come and go deep in the devotion of Baba.
हम वेबसाइट www.babakhatushyam.com के माध्यम से आप सभी भक्तगणों को मोर्वीनन्दन की हर संभव जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे। हम सच्चे मन से यह मानते हैं कि श्रीश्याम सरकार की सेवा उनके कृपा के बिना नहीं मिल सकती और हम अपने आप को बहुत गर्वित महसूस करते हैं कि इसी बहाने हमें श्रीखाटू नरेश और उनके भक्तों की सेवा करने का शुभ अवसर मिला है। वैसे तो श्रीखाटूश्याम जी का सम्पूर्ण भारत में कई मन्दिर हैं किन्तु इनका मुख्य मन्दिर राजस्थान के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहां पर बाबा खाटूश्याम जी का विश्व विख्यात मन्दिर है। फाल्गुन मेला श्रीखाटूश्याम जी (मोर्वीनन्दन) का मुख्य मेला है। यह मेला फाल्गुन में तिथि के आधार पर 5 दिनों के लिये होली के आसपास मनाया जाता है।
अभी भी कुछ श्रद्धालु ऐसे हैं जो बाबा खाटूश्याम (मोर्वीनन्दन) का नाम तो जानते हैं लेकिन उनका वास्तविक रूप नहीं जानते और कुछ व्यक्ति तो नाम भी नहीं जानते। आइये........इनका थोड़ा संक्षिप्त परिचय जान लेते हैं कि आखिर ये हैं कौन ? क्यों इन्हें लोग पूजते हैं ? क्यों इन्हें शीश का दानी कहते हैं ?
हिन्दू धर्म के अनुसार, श्रीखाटूश्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरंभ होती है। इन्हें पहले बर्बरीक के नाम से पुकारा जाता था। ये अति बलशाली, पराक्रमी, गदाधारी भीमसेन के पौत्र, घटोत्कच और नाग कन्या मोरवी के पुत्र हैं। बर्बरीक ने अपनी माँ तथा श्रीकृष्ण से युद्ध कला सीखी। तपस्या करके तीन अमोघ बाण प्राप्त किये। इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से भी प्रसिद्ध हुये। उस समय की बात है जब महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के बीच अपरिहार्य हो गया था। जब बर्बरीक को पता चला तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा प्रकट हुई। युद्ध में सम्मिलित होने के लिये जब बर्बरीक अपनी माँ (मोरवी) से अनुमति एवं आशीर्वाद लेने के लिये पहुंचे तो उनकी माँ ने वचन दिया की हारे हुये पक्ष का साथ देना है।
जैसे ही बर्बरीक महाभारत के युद्ध में पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम किस तरफ हो ? तभी बर्बरीक ने कहा कि जो पक्ष निर्बल एवं हार रहा होगा। मैं उस पक्ष के तरफ से युद्ध लड़ूंगा। श्रीकृष्ण को पता था कि बर्बरीक शक्तिशाली एवं बाणधारी है जो अपने अमोघ बाण से सभी को मार सकते है। श्रीकृष्ण समझ गये कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और यदि बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जायेगा। इसलिये श्रीकृष्ण ब्राह्मण रूप धारण करके बर्बरीक का सिर दान में मांगा। तभी बर्बरीक ने कहा कि हे ब्राह्मण तुम अपने वास्तविक रूप में आओ ! क्योंकि तुम ब्राह्मण नहीं हो सकते तब श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप में आये और बर्बरीक को सिर मांगने का कारण समझाया। तब बर्बरीक ने कहा कि हे प्रभु ! सिर तो मैं दान में दे दूंगा। लेकिन मैं युद्ध को देखना चाहता हूँ श्रीकृष्ण प्रार्थना स्वीकार कर ली और उसके कटे हुये सिर को एक सबसे ऊँचे स्थान पर रख दिया जिससे वह युद्ध को देख सके। संपूर्ण युद्ध को देखने के बाद सभी यौद्धाओं ने बर्बरीक से पूछा की युद्ध में कौन महान था? तब बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को सबसे महान एवं चतुर बताया। श्रीकृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में तुम मेरे नाम यानि श्याम नाम से जाने जाओगे। इन्हें शीश के दानी के नाम से भी पुकारा जाता है और यही है बर्बरीक का दूसरा अवतार, आज जिन्हें हम श्रीखाटूश्याम जी नाम से संबोधित करते हैं। जो भी सच्चे मन से इनकी शरण में खाटूश्याम जाता है, उसके समस्त कारज प्रभु श्रीखाटूश्याम पूर्ण करते हैं और उसके जीवन को सुख, समृद्धि व खुशियों से भर देते हैं।
देश-विदेश से आये हुये सभी श्रद्धालुओ का खाटूनगरी में हार्दिक स्वागत है। खाटूनगरी में आने के लिये रिंगस जक्शन (रेलवे स्टेशन) सबसे निकटतम है जो खाटूश्याम मन्दिर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यदि आप ट्रेन से आते हैं तो स्टेशन पर उतरने के बाद आप अपनी सुविधानुसार बस/टैक्सी के माध्यम से बाबा खाटूश्याम मन्दिर तक पहुंच सकते हैं।
श्याम श्रद्धालुओं के लिये खाटूधाम में श्याम कुण्ड और श्याम बाग प्रमुख दर्शनीय स्थान है। ऐसी मान्यता है कि श्याम कुण्ड में जो भक्तगण श्रद्धापूर्ण स्नान करते हैं उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। कुण्ड में स्नान करने के लिये महिलाओं एवं पुरूषों के लिये अलग-अलग क्षेत्र भी निर्धारित किये गये हैं। ताकि किसी भी प्रकार की असुविधा न उत्पन्न हो।
यह द्वार खाटूश्याम मन्दिर पहुंचने के ठीक पहले स्थित है। इस द्वार में काफी प्राचीन चित्रकारियाँ दर्शायी गई हैं। इसको बनाने में लगभग 4-5 वर्ष लगे। इस द्वार को खाटूश्याम द्वार के नाम से भी जानते हैं।
वैसे तो संपूर्ण भारत में बाबा खाटूश्याम जी के कई मंदिर हैं लेकिन सबसे भव्य एवं विशाल मंदिर राजस्थान के सीकर जिले का है। ये मन्दिर प्रसिद्ध मकराना संगमरमर से निर्मित है। जो देखने में बहुत खूबसूरत दिखाई देता है। यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिये आते हैं। सभी श्रद्धालुओं के लिये उचित व्यवस्था का भी प्रबन्ध किया जाता है। यहां पर सैकड़ों धर्मशालायें एवं पार्किंग की भी उचित व्यवस्थाऐं है ताकि श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो सके।