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Baba Khatu Shyam Ekadashi

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Padmini Ekadashi Vrat Katha and Vrat Vidhi in Hindi


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29.07.2023-Saturday (Shukla Paksha)

भगवान कृष्ण बोले - हे युधिष्ठिर ! अधिक (लौंद) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मनी है। इसमें मेरी और मेरी प्यारी वृषभानु दुलारी की तथा शिव पार्वती की पूजा की जाती है। इसकी विधि यह है- दशमी के दिन मिथ्या भाषण निंदा आदि कुकर्मों का त्याग करे, रात्रि को भूमि पर शयन करे इसके महात्म्य की कथा पुलस्त्य ने नारद ऋषि को सुनाई थी।

त्रेता युग में एक महिष्मति नामक नगरी में कृतवीर्य नाम राजा राज्य करता था। उनकी सौ स्त्रियां थी, पुत्र एक भी न था। पुत्र प्राप्ति के लिये पुत्रेष्टी यज्ञादि अनेक उपाय किये परन्तु पुत्र उत्पन्न न हुआ। अन्त में यही विचार किया कि गन्ध मादन पर्वत पर जाकर तपस्या करूँ। उसकी स्त्री ने कहा मैं भी साथ चलूंगी। पति और पत्नी दोनों ने गंध मादन पर्वत पर जाकर दस हजार वर्ष तक तपस्या की परन्तु सिद्धि को प्राप्त न कर सके। राजा रानी दोनों का माँस सूख गया। हड्डियों का पिंजरा रह गया। रानी ने विचार किया अब महा पतिव्रता अनुसुईया की शरण में जाकर कोई और उपाय पूंछू। ऐसा विचार कर अत्रि मुनि की पत्नी अनुसुईया के पास आई। दंडवत पूजा कर कहने लगीं, मैं राजा हरिश्चन्द्र की पुत्री हूँ। पति के साथ तपस्या करने आई थी, परन्तु दस हजार वर्ष व्यतीत हो गये भगवान रूठे ही रहे, पुत्र एक न दिया। उनकी प्रसन्नता का उपाय कोई और बतलाओ, जिसके करने से हमारा कल्याण हो। अनुसुईया ने उत्तर दिया अधिक मल मास जो 32 मास के बाद आता है उसके शुक्ल पक्ष की एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करो ऐसा अजेय पुत्र. मिलेगा, जिसको रावण भी विजय न कर सकेगा। अतः प्रमदा रानी ने पद्नी एकादशी का श्रद्धा से व्रत किया और कीर्तिवीर्य नामक पुत्र को प्राप्त किया। कीर्तवीर्य महाप्रतापी राजा था, देवता दैत्य सब उसको प्रणाम करते थे। रावण जैसों को विजय कर उसने अपनी जेल में बन्द किया था। पुलस्त्य मुनि के कहने से उसे छोड़ दिया था। अतः सूत जी ने अट्ठासी हजार ऋषियों को यह कथा श्रीनेमिषारण्य वन में सुनाई थी। जैसे अनेक रूई के पर्वत हों और एक चिनगारी अग्नि की हो वैसे अनन्त जन्मों के पाप हों और एक पद्मनी एकादशी व्रत का फल हो दोनों एक समान समाप्त करने की शक्ति रखते हैं।

फलाहार- इस दिन नरोत्तम भगवान की धूप दीप नैवेद्य पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।