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21-01-2024 Sunday(Shukla Paksha)
भगवान कृष्ण बोले- हे धर्म पुत्र ! पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा है। पुत्र की कामना पूरी करने वाली है। इसके महात्म्य की कथा ऐसे है - एक समय भद्रावती नगरी में एक संकेतमान राजा राज्य करता था, उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। विश्व विभूतियों से भवन भरा था। द्वार पर चिन्ता मणियों का प्रकाश था, परन्तु राजा की आंखों में अंधेरा सा प्रतीत होता था, कारण कि उसके पुत्र नहीं था और वह स्वर्ग के सुखों को नरक के समान कहता था। पुत्रेष्ठी यज्ञ हजारों किये सफल न हुआ। देवताओं को लाखों प्रणाम किया लेकिन आशीर्वाद एक भी न मिला, बेचारा हार गया और बुरे-बुरे विचार करने लगा क्या करूं! विष खालू और भूत बन जाऊँ तो अच्छा है परन्तु यह चिन्ता अच्छी नहीं। फिर विचार करने लगा आत्मघात करना महापाप है, इस चिन्ता से छूटने का उपाय वन वासियों से पूछूं। घोड़े पर सवार होकर वन विहार करने लगा, पशु पक्षी इत्यादि जीवों को पुत्रों के साथ खेलते हुए देखा मन में कहने लगा मेरे से यह भी सौभाग्यशाली है। आगे चला तो एक सरोवर मिल गया, उसमें मछलियां, मेंढक इत्यादि पुत्रों के साथ विलास कर रही थी, विचार किया यह भी मेरे से अच्छे हैं सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम थे राजा घोड़े से उतर कर मुनियों शरण में गए और प्रणाम कर पूछा, आप कौन हो ? मुनि बोले हम विश्व के देवता हैं, इस सरोवर को पतित पावन समझकर स्नान के लिये आये हैं। आज पुत्रदा एकादशी का पर्व है, जो पुत्र की इच्छापूर्ण करती है। राजा बोला- क्या यह दिव्य फल मुझे भी व्रत करने से मिल जाएगा विश्वदेव बोले हमारी बात सत्य होगी परीक्षा करके देख लो। राजा ने श्रद्धा से पुत्रदा एकादशी का व्रत कर रात्रि को जागरण किया प्रातः भवन में चला गया। नौ मास के बाद उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा के दिल को धैर्य मिला, पितृ भी प्रसन्न हो गये। इस कथा को सुनने से भी स्वर्ग मिलता है।
फलाहार - इस दिन नारायणी की पूजा की जाती है इस दिन बछड़े की माँ (गौ) के दूध का सागार लिया जाता है।