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20.03.2024- Wednesday(Shukla Paksha)
श्रीकृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर ! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम आमला है। एक समय वशिष्ठ मुनि से मानधाता राजा ने पूछा, समस्त पापों का नाश करने वाला कौन व्रत है ? वशिष्ठ जो बोले- पौराणिक इतिहास कहता है - वैश्य नाम की नगरी में चन्द्रवंशी राजा चैत्ररथ नाम का राजा राज करता था वह बड़ा धर्मात्मा था, प्रजा भी उसकी वैष्णव थी। बालक से लेकर वृद्ध तक एकादशी व्रत किया करते थे। एक बार फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की एकादशी आई और नगर निवासियों ने रात्रि को जागरण किया, मन्दिर में कथा कीर्तन करने लगे। एक बहेलिया जो कि जीव हिंसा से उदर पालन करता है। मन्दिर के कोने में जा बैठा। आज वह शिकारी घर से रूठ चुका था दिन भर खाया पिया कुछ भी न था रात्रि को दिल बहलाने के लिए मन्दिर के कोने में जाकर छुप बैठा। वहाँ विष्णु भगवान की कथा तथा एकादशी व्रत का महात्म्य सुना, रात्रि व्यतीत हो गई प्रातःकाल घर को चला गया। भोजन पाया तो उसकी मृत्यु हो गई। आमला एकादशी के प्रभाव से उसका जन्म राजा विदूरथ के घर हुआ, नाम उसका वसूरत प्रसिद्ध हुआ। एक दिन राजा वन विहार करने गया और दिशा का ज्ञान न रहा, आपको पागल समझकर एक वृक्ष के नीचे सो गया। आज राजा ने आमला एकादशी का व्रत रखा था, सोते समय भगवान का ध्यान लगाकर सोते थे, इधर मलेछों ने राजा को अकेला देखा। मलेछों के सम्बन्धियों को किसी दोष के कारण राजा ने दंड दिया था, इस कारण उसे मारने आये। उस समय राजा के शरीर से एक सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई यह आमला एकादशी के प्रभाव से उत्पन्न हुई थी कालिका के समान अट-अट करके उसने खप्पर फिराया, मलेछों के रूधिर की भिक्षा लेकर अन्तर्ध्यान हो गई। राजा ने जगकर शत्रुओं को मरा हुआ देखा और आश्चर्य हुआ, मन में कहने लगा, मेरी रक्षा विष्णु भगवान ने की है।
फलाहार-इस दिन आँवले के पेड़ के नीचे कलश स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से परशुराम भगवान की पूजा की जाती है। इस दिन आंवलों का सागार लेना चाहिए।