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कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सायंकाल मेष लग्न में शिव जी ने अपने इष्टदेव की सेवा करने के लिये अवतार ग्रहण किया।
ऊर्जे कृष्ण चतुर्दश्यां भौमेस्वात्यां कपीश्वरः।
मेष लग्नेऽजनागर्भात प्रादुर्भूतः स्वयं शिवः।।
कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी भौमवार की अर्धरात्रि में अंजना देवी के उदर से हनुमान जी का जन्म हुआ। अतः हनुमत भक्तों को चाहिए कि वे प्रातःकाल नित्य क्रिया से निवृत्त होकर षोडशोपचार से हनुमान जी का पूजन करें। गन्धपूर्ण तेल से सिन्दूर मिलाकर उससे मूर्ति पर चर्चित करें। सुन्दर पुष्पहार पहनावें तथा नैवेद्य में घृतपूर्ण चूरमा या घी में से के हुए शर्करा मिले हुए आटे का मोदक एवं केला, अमरूद आदि अर्पण कर ‘सुन्दरकाण्ड’ हनुमान चालीसा का पाठ करें। रात्रि के समय घृत पूर्ण दीपकों की दीपावली का प्रदर्शन कराये। यद्यपि अधिकांश उपासक इसी दिन हनुमान जयन्ती मनाते हैं। और व्रत करते हैं परन्तु शास्त्रानुसार में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमज्जन्म का उल्लेख है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमान जयन्ती का यह कारण है कि लङ्का विजय के पश्चात् श्री राम अयोध्या आये। पीछे श्री रामचन्द्र और माता सीता जी ने वानरादि को विदा करते समय यथा योग्य पारितोषित दिया था।
उस समय इसी दिन (का. कृ 14) को सीता जी ने हनुमान जी को अपने गले की माला पहनायी, जिसमें बड़े-बड़े बहुमूल्य मोती अनेक रत्न थे, परन्तु उसमें राम नाम न पाने से हनुमान जी उससे संतुष्ट न हुए। तब भगवती जानकी ने अपने ललाट पर लगा हुआ सौभाग्य सिन्दूर प्रदान किया। और कहा- ‘इससे बढ़कर मेरे पास अधिक महत्व की कोई वस्तु नहीं है। अतएव तुम इसे हर्ष के साथ धारण करो और सदैव अजर-अमर रहो। यही कारण है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमज्जन्म-महोत्सव मनाया जाता है और तेल सिन्दूर चढ़ाया जाता है।