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(यम यातना काटनें की कथा-यमुना चरित)- भगवान् सूर्य समस्त प्राणियों के कल्याण के लिये निरन्तर भ्रमण करते हैं। अपनी किरणों द्वारा खींचकर बरसाते हैं। धूप से संसार को जीवनदान एवं पवित्र करते हैं। इसलिये सूर्य नारायण को संसार के चराचर प्राणियों की आत्मा कहते हैं। उनका पुत्र यम नरक में दारूण यातना देने वाला तथा पुत्री यमुना भगवान् श्री कृष्ण की पटरानी वात्सल्यमयी करूणामयी है। प्राणियों का कर्म बन्धन काटकर यम यातना से कैसे छुड़ाऊँ। यही दिन रात सोचती है, बहुत बार भाई यम को आमन्त्रित किया। द्वारका बुलाया। पर वह न आये। एक बार यमुना ने बड़ा आग्रह कर बुलाया। दीपावली के दो दिन बाद द्वितीया को महिष पर सवार यमराज द्वारिका पधारे। काल से भी युद्ध करने वाले द्वारिकावासीं यमराज के भयंकर रूप को देखकर यदुवंशियों में भगदड़ मच गई।
सब समाचार जान यमुना जी को बड़ी लज्जा आई। बड़े भाई का स्वागत सत्कार किया। विविध प्रकार के मिष्ठान्न व्यंजन खिलायें।
यम ने कहा-छोटी बहन के यहां नही खाना चाहिए। मैंने खा लिया है। इसके बदले में वरदान मांग ले। यमुना जी ने कहा- आज के दिन कोई बहिन-भाई का सत्कार करे एवं भाई बहन का सम्मान करें उसे यमयातना न भोगनी पड़े। यमराज ने कहा- तथास्तु। ऐसा ही होगा। करूणामयी श्री यमुना जी ने यम यातना बन्धन काटने के लिये आज दिन के दिन भाई यम को प्रसन्न किया था।