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होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्णा की प्रतिपदा को भक्तों ने प्रहलाद की रक्षा का प्रत्यक्ष अनुभव कर बड़ा उत्सव मनाया। अबीर गुलाल उड़ाया तथा एक-दूसरे से मिलकर उत्सव का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। जहां-जहां भी भारत भूमि में भक्त हैं। इस उत्सव को रंग खेलकर बड़े आनन्द से मनाते हैं। औश्वपच चाण्डाल सभी में भगवद् दर्शन बड़े प्रेम से छाती से छाती मिलाकर मिलते हैं। इस दिन राक्षस भी जो श्वपच रूप में थे। भगवान से प्रहलाद को बचाने की प्रार्थना करते थे। आज धन्य हो गये। सभी भक्तों ने भक्त प्रहलाद को कण्ठ से लगाया इसलिये आज श्वपच स्पर्श का विधान है। व्रज में होली का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। रसिया गीत गाये जाते हैं। और बांके बिहारी जी ऊपर अबीर गुलाल उड़ाते हैं। बरसाते की लठ्ठ मार होली तो जगत प्रसिद्ध है। आज के दिन चाहे वो शत्रु ही क्यों न हो उसे भी गले लगाकर वैर भाव मिटा देना चाहिये।