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फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका उत्सव मनाया जाता है। भविष्य पुराण में युधिष्ठिर जी के प्रश्न पर श्री कृष्ण ने रघु के प्रति जो वचन हैं उनको सुनाया है। वशिष्ठ जी बोले-हे राजन फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा के दिन सब मनुष्यों को अभय दे दीजिये। वशिष्ठ जी ने कहा इस दिन बालक निर्भय होकर काठ के टुकड़े लेकर चले जायं। बीच में प्रह्लाद स्वरूप् गड़े स्तम्भ के चारों तरफ लगा दें। उपलों का ऊंचा ढेर बनायें उसमें रक्षोघ्न मन्त्रों के द्वारा विधि के साथ अग्नि दे। और बनाये हुए अपने देश के अनुसार गोबर के सूजर, चन्दा, ढाल तलवार, अग्नि (होली) में डालने चाहिए।
होलिका-निर्णय- इसमें भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा ही लेनी चाहिये होली दिन में, भद्रा में, रिक्ता और प्रतिपदा में होलिका दहन नहीं करना चाहिए। भद्रा के मुख को छोड़कर होलिका पूजन करें। यदि दो दिन प्रदोष व्यापिनी हो तो पर का ग्रहण करना चाहिए। भद्रा में होली जलाने से राष्ट्र भंग होता है। नगर को भी ठीक नहीं होता। रात्रि में स्त्रियां पूजा करके व्रत पूर्ण कर करती हैं। उनका ऐसा विश्वास है, होलिका जल गई और प्रहलाद जी बच गये। भक्त प्रहलाद के बच जाने पर व्रत का पारण करती हैं। होलिका दहन के समय जौ, गेहूं, चना आदि की बलि होली में सेक कर लाते हैं।
पूजा से पूर्व संकल्प करना चाहिए।
संकल्प- देश कालौ संकीर्त्य-मम राकुटुम्बस्य ढुण्ढा राक्षसी पीड़ा परिहारार्थं पूजनं च करिष्ये।
‘ॐ होलिकायै नमः’
कहकर पूजन करना चाहिये। तथा यह मन्त्र पढ़कर जलाना चाहिए।
ॐ असृक्याभय संतप्तै कृत्वा त्वं होलि वालिशैः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूति प्रदाभव।।
होली मुझे मंगल देने वाली हो। ऐसा कहकर होलिका में अग्नि लगा दें भगवान ने होलिका के गोद में बैठे प्रह्लाद को बचा लिया। ऐसा ध्यान करें। पीछे इसकी तीन परिक्रमा करें। दूसरे दिन उसको प्रणाम करके, उसकी राख ग्रहण करें। होलिका को प्रहलाद जैसे भक्त को गोद में बैठाने तथा अंग स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अतः इसकी भस्म शंकर जी ने स्वयं लगाई। इसलिये यह मन्त्र पढ़कर प्रार्थना करें।
वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शंकरेणच।
अतस्त्वं पाहिनों देवि विभूतिर्भूतिदाभव।।
इन्द्र, ब्रह्मा, शंकर जी के द्वारा तुम पूजित हो अभिनन्दित हो अतः आपकी भस्म हमारी रक्षा करें। यह कहकर भस्म ग्रहण करें।
कथा-राक्षस राज हिरण्यकश्यपु ने प्रहलाद को मारने के लिये बहुत उपाय किये, समुद्र में डुबोया, विष पिलाया, पर्वत से गिराया, सर्पों से डसाया जब न मरा तो बड़ा दुःखी हुआ। बहिन होलिका ने कहा-चुप रहो मेरे भाई का लड़का है। इस पर मेरा पूरा हक है। बड़ी भारी चिता तैयार हुई। होलिका प्रहलाद को गोदी में लेकर बैठ गई। अग्नि लगाई गई। भक्त लोगों का हृदय चीत्कार करने लगा सभी के आंखों से आंसू बरस पड़े। बादल छा गये घनघोर वर्षा प्रारंभ हुई। मेरे नारायण लम्बी-लम्बी सांस लेने लगे। तो आंधी चल पड़ी चिता भयंकर रूप से प्रज्जवलित थी। हिरण्यकश्यपु ने पूछा भयंकर अग्नि की ज्वाला हमको सहन नहीं हो रही है। प्रहलाद तुम्हें कैसे लग रहा है। प्रहलाद ने कहा पिताश्री लहरों वाले समुद्र के कमल पर बैठा हूं। शीतलता का अनुभव हो रहा है। होलिका ने गोद से प्रहलाद को धक्का मारकर अग्नि में फेंक दिया। पवन देव ने होलिका का दुपट्टा उड़ाकर प्रहलाद पर डाल दिया। दुपट्टा के प्रभाव से प्रहलाद शान्तिपूर्वक बैठे हरे। होलिका जलने लगी। बचाओ बचाओ चिल्लाई। प्रज्जवलित अग्नि में होलिका स्वाहा हो गई। प्रहलाद निकलकर बाहर आ गये। हिरण्यकश्यपु का मुख सूख गया। बहिन स्वाहा हो गई। राक्षसों ने हार मान ली। भक्त लोग मन ही मन भक्त प्रहलाद की जय-जयकार करने लगे।