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गौरी चतुर्थी का व्रत माघ शुक्ला चतुर्थी के दिन होता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की चौथ उमा ने अपने अंगों से अपने ही गुणों द्वारा फिर वही सृष्टि रच दी जो कि पहिले योगिनियों के साथ रची थी। इस कारण इस चतुर्थी को सब मनुष्यों को चाहिए कि उसको पूजे। पर स्त्रियों को तो इस व्रत को अवश्य ही करना चाहिए। भक्ति भाव से इकट्ठे किये गये कुकुम और अलक्तक एवं कंकड़ के साथ रक्त सत्रों से लाल पुष्प धूप, दीप और बलि के पूजन करना चाहिए। गुड़, अदरख, दूध, नमक के साथ पालकों से अनेक स्त्रियों तथा सुशील ब्राह्मणों का पूजन करना चाहिए। अपने सौभाग्य को बढ़ाने के लिये पीछे बन्धु वर्गों के साथ भोजन करना चाहिए।
वरद चतुर्थी - माघ शुक्ला चौथ के दिन वरद चतुर्थी का व्रत किया जाता है। माघ शुक्ला चौथ के दिन जो रात का व्रत करते हुए जो गणपति का पूजन करता है उसको देवता भी अपना पूज्य मानते हैं। एक साल तीर्थ यात्रा करके पीछे इस चौथ के दिन व्रत करें। व्रत की समाप्ति में सफेद तिलों के लड्डू (गुड़ के साथ मिलाकर) बना कर भोग लगाके स्वयं खाना चाहिए। यह चौथ प्रदोष व्यापिनी होनी चाहिए। यह वरद चौथ का व्रत पूरा हुआ।