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माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की ‘‘मौनी अमावस्या” के रूप में प्रसिद्धि है। इस पवित्र तिथि पर मौन रहकर अथवा मुनियों के समान आचरण कर स्नान, दान करने का विशेष महत्व है। मौनी अमावस्या को यदि सोमवार आ जाय तो इस तिथि का और भी महत्व बढ़ जाता है। इस तिथि को त्रिवेणी प्रयाग राज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। इसलिये प्रयाग राज में स्नान दान की अपार महिमा है।
मौनी अमावस्या को नित्य कर्म से निवृत्त हो स्नान करके तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। इस दिन साधु, महात्मा तथा ब्राह्मणों के सेवन के लिये अग्नि प्रज्जवलित करना चाहिए। तथा उन्हें कम्बल आदि जोड़े के वस्त्र देने चाहिए। इस दिन गुड़ में काला तिल मिलाकर लड्डू बनाना चाहिये तथा उसे लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मणों को देना चाहिए।
स्नान-दानादि पुण्य कर्मों के अतिरिक्त इस दिन पितृ श्राद्ध आदि करने का विधान है। मौनी अमावस्या को यदि रविवार व्यतीपात योग और श्रवण नक्षत्र हो तो ‘अर्धोदय योग’ होता है। इस योग में सभी स्थानों का जल गंगा तुल्य हो जाता है। और सभी ब्राह्मण ब्रह्मसंनिभ शुद्धात्मा हो जाते हैं। अतः इस योग में यत् किचिंत् किये हुए स्नान-दानादि का फल भी मेरू के समान हो जाता है।