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सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘‘मकर संक्रान्ति” कहलाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है। तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा जाता है, इस तरह मकर संक्रान्ति एक प्रकार से देवताओं का प्रभाव काल है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। कहा जाता है कि इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। इस दिन घृत, कम्बल, के दान को विशेष महत्व है।
इसका दान करने वाला संपूर्ण भोगों को भोग कर मोक्ष को प्राप्त होता है।
माघे मासि महादेव यो दद्याद् घृतकम्बलम्।
स भुक्ता सकलान् भोगान् अन्ते मोक्षं च विन्दति।।
मकर संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान तथा गंगा तट पर दान की विशेष महिमा है। तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर का मकर संक्राति का पर्व स्नान को प्रसिद्ध ही है।
मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में इस व्रत को ‘खिचड़ी’ कहते हैं। इसलिये इस दिन खिचड़ी खाने तथा खिचड़ी तिल दान देने का विशेष महत्व मानते हैं। महाराष्ट्र में विवाहित स्त्रियां पहली संक्रान्ति पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएं सौभाग्यवती स्त्रियों को प्रदान करती हैं। बंगाल में इस दिन स्नान कर तिल दान करने का विशेष प्रचलन है। दक्षिण भारत में इसे पोंगल पर्व कहते हैं। आसाम में आज के दिन बिहू का त्योहार मनाया जाता है। राजस्थान की प्रथा के अनुसार इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां तिल के लड्डू, घेवर तथा मोतीचूर के लड्डू आदि पर रूपया रख कर वायना के रूप में अपनी सास को प्रणाम कर देतीं है। तथा प्रायः किसी भी वस्तु का चौदह की संख्या में संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान करती हैं। इस प्रकार देश के विभिन्न भागों में मकर-संक्रान्ति पर विविध परम्परायें प्रचलित हैं।