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माघ स्नान-भारतीय संवत्सर का ग्यारहवाँ चान्द्र मास और सौर मास का दसवाँ माघ मास कहलाता है। इस महीने में मघा नक्षत्र युक्त पूणिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा है। धार्मिक दृष्टि से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पाप मुक्त हो स्वर्ग लोक को जाते हैं।
‘माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्त पापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।’
माघ स्नान में प्रयाग में स्नान, दान, भगवान् विष्णु के पूजन और हरि कीर्तन का महत्व वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में लिखा है-
माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।
पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।।
पह्मा पुराण के उत्तर खण्ड में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है-कि व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान् श्री हरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी प्रसन्नता माघ स्नान मात्र से होती है। इसलिये पापों से मुक्ति और भगवान् वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिये प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए। इस मास में पूर्णिमा को जो ब्रह्मवैवर्त पुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
पुराणं ब्रह्मवैवर्तं यो दद्यान्माघमासि च।
पौर्णमास्यां शुभ दिने ब्रह्म लोके महीयते।।
पौष पूर्णिमा से माघ स्नान प्रारंभ होता है-यह दिवस का प्रथम पवित्र संस्कार है। सूर्योदय से पहिले स्नान करना सुख-स्वास्थ्य, परमार्थ लोक परलोक के लिये आनन्द का द्वार है। फिर स्नान के पश्चात् भगवान् की पूजा में बैठना जीवन को धन्य बनाता है। प्रयाग राज में एक मास का कल्पवास होता है। प्रयाग में माघ स्नान का सर्वाधिक महत्व है। वाराह भगवान् जब पृथ्वी को लाये थे। तब हिरण्याक्ष से युद्ध हुआ था। राक्षस को मारकर ब्रह्मावर्त प्रदेश में अपना शरीर हिलाया उनके रोम से गिरने से कुश तथा पसीने से तिल हुआ है। अतः कुशा धारण करने से तर्पण पूजन का पूर्ण फल प्राप्त होता है। तथा तिल सभी को प्रिय है। इस महीने में तिल का दान तथा तिल के लड्डू दान करने चाहिए।