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मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम का विवाह मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी को जनकपुर में सम्पन्न हुआ। सीता स्वयंबर में भगवान् के द्वारा धनुष तोड़ने के पश्चात् जनक जी के द्वारा अयोध्या दूत भेजने पर महाराज दशरथ बारात लेकर जनक पुर आये। उसके बाद विवाह की विधि पंचमी को सम्मन्न हुई। इसलिये आज भी अयोध्या में तथा जनकपुर में विवाह पंचमी का महोत्सव बड़े धूमधाम से प्रत्येक मंदिर में मनाया जाता है। भक्तगण भगवान की बारात निकालते हैं, तथा भगवान् की मूर्तियों द्वारा रात्रि में भगवती जानकी की मूर्ति के साथ में फेरा (भंवरी) कराते हैं। परम्परा के अनुसार विवाह के पूर्व तथा बाद की सारी विधियां, कुवँर मेला, सजनगोठ आदि संपन्न कराते हैं। सीता स्वयंबर की लीला भी कई स्थानों में इस अवसर पर दिखाई जाती है। देश के विभिन्न भागों में राम भक्त अपने-अपने ढंग से आनन्द और उल्लास पूर्वक मनाते हैं।