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शिव पुराण की रूद्र संहिता के अनुसार सदा शिव ने मार्गशीर्ष (अगहन) मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव रूप में अवतार लिया। अतः उन्हें साक्षात् भगवान शंकर ही मानना चाहिए।
भैरवः पूर्णरूपो हि शङ्करस्य परात्मनः ।
मूढास्तं वै न जानन्ति मोहिताश्शिव मायया।।
व्रत विधि - भैरव जी का जन्म मध्यान्ह में हुआ था, इसलिए मध्यान्ह व्यापिनी अष्टमी लेनी चाहिए। इस दिन प्रातः काल उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करना चाहिए। तथा भैरव जी के मंदिर में जाकर वाहन सहित उनकी पूजा करनी चाहिये।
ॐ भैरवाय नमः
इस नाम मन्त्र से यथालब्धोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। भैरव जी का वाहन श्वान है। अतः इस दिन कुत्तों को मीठे पदार्थ खिलाना चाहिए।
इस दिन उपवास करके भगवान काल भैरव के समीप जागरण करने मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
भैरव जी का पूजन कर अर्ध्य देना चाहिए।
अर्ध्य मन्त्र -
भैरवर्ध्यं गृहाणेश भीमरूपात्यया नघ।
अनेनार्ध्य प्रदानेन तुष्टो भव शिव प्रिय ।।
काल भैरव काशी के कोतवाल हैं (नगर रक्षक हैं) काशी में भैरव जी के अनेक मंदिर हैं। जैसे काल भैरव, बटुक भैरव, आनन्द भैरव आदि। भैरवाष्टमी यदि मंगल या रविवार को पड़े तो उसका महत्व और बढ़ जाता है।