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कार्तिक मास में एक मास का व्रत व स्नान न कर सके तो वह कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक सूर्योदय से पूर्व स्नान एवं व्रत करने से कार्तिक मास का पूर्ण फल प्राप्त करता है। पुष्कर तीर्थ में जहां ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। ऋद्धालु आज भी जाकर नियम पूर्वक स्नान करते हैं एवं व्रत करते हैं। नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा-इसका इतना बड़ा फल क्या है। ब्रह्म जी ने कहा-वत्स शरशय्या पर सोये हुए भीष्म के पास सबको लेकर श्री कृष्ण गये और कहा-अब ज्ञान का सूर्य अस्त होने चला है। इनसे धर्म के विषय में पूछ लीजिये। तब सब ऋषि-मुनियों की सन्निधि, दान धर्म, मोक्ष धर्म वर्णन के कारण ये दिन सर्वश्रेष्ठ है, इसी से इसे भीष्म पंचक कहते हैं।
भीष्म जी को इस मंत्र से सव्य होकर अर्ध्य देना चाहिये।
मन्त्र-
सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।
भीष्मायै तद्ददाम्यर्घ्यं आजन्म ब्रह्म चारिणे।।
जो पुरूष या स्त्री कार्तिक मास का व्रत करें वो व्रती भीष्म पंचक व्रत को न करें अन्यथा सब फल निष्फल हो जाता है। इस (भीष्म पंचक) व्रत को करके पूर्णिमा को पाप पुरूष का दान करना चाहिये। जो सन्तानहीन है, उसे इस व्रत के प्रभाव से एक वर्ष में अवश्य पुत्र प्राप्ति होती है।
भीष्म पंचक व्रत करने से भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं।