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ब्रह्माजी ने उत्कृष्ट तप किया। भगवान ने प्रसन्न होकर दर्शन दिये दर्शनानन्द से प्रेमाश्रु टपके, इसी से आंवले की उत्पत्ति हुई। पुराणों में निर्देश दिया है, यह परम पवित्र आमलकी फल उदर (पेट) में हो तो-यमदूत स्पर्श नहीं करते। मृत्यु के पश्चात् तुलसी या आवंला, गंगा जल से मनुष्य भगवद्धाम का अधिकारी होती है। आंवले के दर्शन पूजन भक्षण से प्रभु प्रेम की प्राप्ति होती है। भोजन के पश्चात् आंवले के चूर्ण भक्षण से मुखशुद्धि होकर मुख की झूठन दूर होती है।
धर्म शास्त्र का विधान है आयुर्वेद की दृष्टि से त्रिदोष नाशक होने से सभी रोग नष्ट होते हैं। आंवले के चूर्ण का सेवन करने वाले को हृदय रोग, कैंसर, नेत्र रोग, पागलपन, ब्लडप्रेशर नहीं हो सकता। इस दिन पज, तप, पूजन करने वाले को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए यह अक्षय नवमीं भी कहलाती है।
नोटः- इसी दिन मथुरा वृन्दावन में जुगल जोड़ी की परिक्रमा भी होती है।